होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। फाल्गुन मास हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का अंतिम मास होता है। इस वर्ष होलिका दहन 1 मार्च को सुबह 8 बजकर 58 मिनट से पूर्णिमा तिथि लग रही है लेकिन इसके साथ भद्रा भी लगा होगा और धुलण्डी 2 मार्च को मनाई जाएगी। होली को फूलों का त्योहार भी कहते हैं क्योंकि फाल्गुन मास में बसंत ऋतु अपनी चरम उत्कर्ष पर होती है एवं चारों ओर फूल खिले रहते हैं। प्राचीन काल में होली केवल फूलों से, या फूलों से बने रंगों से ही खेलने का प्रचलन था। परंतु आधुनिक समय में रंगों एवं गुलाल से होली खेलने का प्रचलन बढ़ गया है।
भक्त प्रहलाद राक्षस कुल में जन्मे थे परंतु फिर भी वे नारायण के अनन्य भक्त थे। जैसा कि सर्वविदित है कि भक्त प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप को उनकी ईश्वर भक्ति अच्छी नहीं लगती थी तथा भगवान भक्ति से उनका ध्यान हटाने के लिए हिरण्यकश्यप ने उन्हें नाना प्रकार के जघन्य कष्ट दिए थे। उनकी बुआ होलिका जिसको ऐसा वस्त्र वरदान में मिला हुआ था जिसको पहन कर आग में बैठने से उसे आग नहीं जला सकती थी। होलिका भक्त प्रहलाद को मारने के लिए वह वस्त्र पहन कर उन्हें गोद में लेकर आग में बैठ गई थीं। परंतु यह आग भक्त प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं कर पाई और इस आग में होलिका स्वयं ही जल कर भस्म हो गई क्योंकि भगवत कृपा से वह वस्त्र तेज हवा चलने से होलिका के शरीर से उड़कर भक्त प्रहलाद के शरीर पर गिर गया। इस प्रकार यह कहानी यह संदेश देती है कि दूसरों का बुरा करने वालों का ही बुरा पहले होता है। तथा जो अच्छे एवं बुरे दोनों समय में भक्त प्रहलाद की भांति ईश्वर में अटूट विश्वास रखते हुए अपना कार्य करतें है उनको भगवत कृपा प्राप्त होती है। होलिका के भस्म होते ही भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में खंभे से निकल कर गोधूली बेला यानी सुबह व शाम के समय का संधिकाल, में दरवाज़े की चौखट पर बैठकर हिरण्यकश्यप को अपने नुकीले नाख़ूनों से उसका पेट फाड़कर उसे मार डालते हैं।
होली का त्योहार राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जुड़ा है। बसंत में एक-दूसरे पर रंग डालना श्रीकृष्ण लीला का ही अंग माना गया है। मथुरा-वृंदावन की होली राधा-कृष्ण के प्रेम रंग में डूबी होती है। बरसाने और नंदगांव की लठमार होली जगप्रसिद्ध है। होली पर होली जलाई जाती है अहंकार की, अहं की, वैर-द्वेष की, ईर्ष्या की, संशय की और प्राप्त किया जाता है विशुद्ध प्रेम।
होली को लेकर भक्त प्रहलाद की कथा तो हर कोई जानता है, लेकिन होली को लेकर कई प्रकार की परंपराएं भी प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक है होली की आग में गेहूं की बालियां डालना। हममें से लगभग सभी लोग इस परंपरा को मानते हैं और प्रत्येक वर्ष होली की आग में गेहूं की बाली डालते हैं, लेकिन कभी सोचा है कि आखिर ऐसा क्यों किया जाता है ? फाल्गुन मास की शुरुआत और नए धान की पैदावार घर-घर में खुशियां लेकर आती है। घर में सुख-समृद्धि की कामना के लिए होलिका दहन में गेहूं की बालियां भी डाली जाती हैं। मान्यता है कि पहली फसल का पहला गेहूं ईश्वा और पूर्वजों को भेंट करने से पूरे साल घर में पूर्वजों के आशीर्वाद से सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। सात बालियों की देनी चाहिए आहुति -होली की अग्नि में गेहूं की 7 बालियों की आहुति दी जाती है। 7 के पीछे मान्यता यह है कि 7 का अंक शुभ माना जाता है। इसलिए ही तो सप्ताह में 7 दिन और विवाह में 7 फेरे होते हैं। यही वजह है कि गेहूं की 7 बालियां होलिका में डाली जाती हैं।